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उत्तर संख्या : 341 माया चार प्रकार की है : १. बाँस की जड के समान २. मेष के शृंग समान २. गोमूत्र के समान ४. खुरपा के समान

उत्तर संख्या : 342 जैसे -बॉस की जड अत्यंन्त टेढी-मेढी होती है उसी प्रकार जिनके परिणाम अर्थात मन वचन काय की अत्यन्त कुटिलता पाई जाती है उसे बॉस की जड समान माया कहते है।

उत्तर संख्या : 343 बॉस की जड के समान माया बहिरात्मा मिथ्यादृष्टि को होती है।

उत्तर संख्या : 344 बॉस की जड के समान माया अनन्त काल तक रहती है।

उत्तर संख्या : 345 अनन्तानुबन्धी माया छह महिने से लेकर अनन्त काल तक रहती है।

उत्तर संख्या : 346 अनन्तानुबन्धी माया मिथ्यात्व रुप भावों से होती है। तत्वों का अश्रध्दान करने से एवं जिनवाणी का विपरीत अर्थ करने से होती है। विषय कषायों की तीव्र लालसा वश होती है। मन में कुछ वचन से कुछ, और काय से कुछ करने से होती है।

उत्तर संख्या : 347 अनन्तानुबन्धी माया मिथ्यात्व रुप भावों से होती है। तत्वों का अश्रध्दान करने से एवं जिनवाणी का विपरीत अर्थ करने से होती है। विषय कषायों की तीव्र लालसा वश होती है। मन में कुछ वचन से कुछ, और काय से कुछ करने से होती है।

उत्तर संख्या : 348 अब अनन्तानुबन्धी माया करनेसे सम्यक्त्व एवं चारित्र छूट जाता है। माया कषाय के कारण दूसरों से विश्वास घात होने से मित्रता खत्म हो जाती है। हिंसादि पापों में प्रवृत्ति बढ जाती है। आत्मा का पतन एवं दुर्गति की प्राप्ति होती है।

उत्तर संख्या : 349 अनन्तानुबन्धी माया करने से जीव नियम से नरक गति में जाता है।

उत्तर संख्या : 350 अनन्तानुबन्धी माया कषाय करने वाले जीव सामान्य से चारों गतियों में पाये जाने पर भी मुख्य रुप से नरकगति में पाये जाते है।

उत्तर संख्या : 351 जैसे मेष के श्रृंग अर्थात मेढे के सींग टेढ़े-मेढे होते है वैसे ही जिनके मन क्चन काय की क्रिया (विचार) टेढे -मेढे होते है उसे मेष श्रृंग के समान माया कहते है।

उत्तर संख्या : 352 मेष श्रृंग के समान माया अविरत सम्यग्यदृष्टि को चतुर्थ गुणस्थान में होती है।

उत्तर संख्या : 353 मेष श्रृंग के समान माया अधिक से अधिक छह महीने तक रहती है ।

उत्तर संख्या : 354 मेष श्रृंग के समान माया को अप्रत्याख्यान माया कषाय कहते है।

उत्तर संख्या : 355 अप्रत्याख्यान माया कषाय अन्तर्मुहुर्त से लेकर छह महीने तक रहती है।

उत्तर संख्या : 356 अप्रत्याख्यान माया निम्न लिखित के कारण होती है : १. अविरत सम्यग्यदृष्टि की गृहस्थी के प्रपंच के कारण २. धर्म में अनुत्साह होने के कारण ३. पंचेन्द्रिय विषय कषायों में लालसा रखने के कारण ४. धनाकांक्षा, महत्वाकांक्षा आदि के कारण

उत्तर संख्या : 357 अप्रत्याख्यान माया करने से सम्यक्त्त्व रुप परिणामों का घात होता है। धर्म पालन करने में शिथिलता आ जाती है। नवीन कर्मों का बन्ध एवं आत्मा का पतन होता है।

उत्तर संख्या : 358 अप्रत्याख्यान माया करने से जीव तिर्यंच गति में जाता है ।

उत्तर संख्या : 359 अप्रत्याख्यान माया कषाय करने वाले जीव चारो गतियों में पाये जाने पर भी मुख्य रुप से तिर्यंच गति में पाये जाते है।

उत्तर संख्या : 360 जैसे चलती हुई गाय पेशाब करती हुई जाने पर जिस तरह उसकी पंक्ति टेढी-मेंढी होती जाती है उसी प्रकार जिनके परिणाम टेढे -मेढे होते है उसे गोमुत्र के समान माया कहते है ।

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