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उत्तर संख्या : 361 गोमुत्र के समान माया देशव्रती को पंचम गुणस्थान में होती है।

उत्तर संख्या : 362 गोमुत्र के समान माया १५ दिन तक रहती है।

उत्तर संख्या : 363 गोमुत्र के समान माया को प्रत्याख्यान माया कषाय कहते है।

उत्तर संख्या : 364 प्रत्याख्यान माया अन्तर्मुहूर्त से लेकर १५ दिन तक रहती है।

उत्तर संख्या : 365 प्रत्याख्यान माया मन में कुटिल भाव रखने से होती है। शरीर व वचन से कुटिल व्यवहार करने के कारण होती है। त्याग व तप में विकृति रखने से होती है। इन्द्रिय विषयों की चाह के कारण होती है। श्रावक के व्रत पालते हुये भी घरेलू प्रवृत्तियों के कारण होती है।

उत्तर संख्या : 366 प्रत्याख्यान माया करने से देशव्रत का घात होता है। संयमियों में विवाद उत्पन्न होता है। हिंसादि पापों में प्रवृत्ति बढ जाती है। आत्मा का पतन एवं कर्मों का बंध होता है।

उत्तर संख्या : 367 प्रत्याख्यान माया करने से जीव मनुष्य गति में जाते है।

उत्तर संख्या : 368 प्रत्याख्यान माया कषाय करने वाले जीव चारों गतियों में पाये जाने पर भी मुख्य रुप से मनुष्य गति के जीवों में पाये जाते है।

उत्तर संख्या : 369 जैसे खुरपा सामान्य रुप से एक ही मोड वाला होता है उसी प्रकार जिस जीव के परिणाम साधारण ही वक्र होते हैं उसे खुरपा के समान माया कषाय कहते है।

उत्तर संख्या : 370 खुरपा के समान माया सकल व्रतों के धारक मुनियों को होती है।

उत्तर संख्या : 371 खुरपा के समान माया अधिक से अधिक एक अन्तर्मुहूर्त तक रहती है।

उत्तर संख्या : 372 खुरपा के समान माया को संज्वलन माया कषाय कहते है ।

उत्तर संख्या : 373 संज्वलन माया कषाय अधिक से अधिक एक अन्तर्मुहूर्त तक होती है।

उत्तर संख्या : 374 संज्वलन माया महाव्रतों की रक्षा के भाव से होती है। शिष्य आदि को संग्रह करने के भाव से होती है।

उत्तर संख्या : 375 संज्वलन माया करने से यथाख्यात चारित्र का घात होता है। निश्चय रत्नत्रय रुप परिणामों की हानि होती है। मोक्ष के विपरीत संसार में रुकना पडता है।

उत्तर संख्या : 376 संज्वलन मायाचारी करने से जीव देवगति में जाते है।

उत्तर संख्या : 377 लालच या तृष्णा करने को लोभ कहते है। धन आदि की तीव्र आकांक्षा रखने को लोभ कहते है परवस्तुओं में ममत्व भाव रखने को लोभ कहते है। अनावश्यक वस्तुओं को इकट्ठी करने को लोभ कहते है।

उत्तर संख्या : 378 परिग्रह और लोभ में कोई अन्तर नही है क्योकी दोनों मे ही लालच रुप परिणाम पाये जाते है।

उत्तर संख्या : 379 लोभ चार प्रकार को होता है : १. किरमी के रंग के समान या दाग के समान २. काजल के समान या चक्के के रोगन के समान ३. कीचड के समान ४. हल्दी के समान

उत्तर संख्या : 380 जैसे किरमी नाम के कीडे से कपडे में लगा हुआ दाग जल्दी नहीं छुटता है वेसे ही जिस राग या लोभ वश जीव के परिणाम पर पदार्थ के ममत्व भाव शीघ्र ना हटे उसे किरमी रंग के समान लोभ कहते है।

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