उत्तर संख्या :
21 पृथ्वी, अप, प्रकाश, छाया, शब्द, बन्ध आदि सभी पुद्गल स्कन्ध हैं ।
उत्तर संख्या :
22 शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, आकार, भेद, तम, छाया, उद्योत, आताप आदि सभी पुद्गल की पर्याये हैं।
उत्तर संख्या :
23 स्कन्ध के छह भेद हैं।
१. स्थूल-स्थूल २. स्थूल ३. स्थूल सूक्ष्म ४. सूक्ष्म - स्थूल ५ . सूक्ष्म
६. सूक्ष्म-सूक्ष्म । ये छह
उत्तर संख्या :
24 जो पुद्गल स्कन्ध टूट जाये, जुड़ जाये किन्तु जोड़ने पर जिनका जोड़ दिखता रहे उसे स्थूल स्थूल हकतें है। जैसे : पुथ्वी, पत्थर, लकड़ी, आदि घन पदार्थ स्थूल स्थूल हैं।
उत्तर संख्या :
25 जो तोड़ने, मोड़ने और छेदने पर फिर स्वयं पुनः जुड़ जाये और जुड़ने पर जिनका जोड़ न दिखे उसे स्थूल कहते हैं । जैसे : दूध, घी, तेल, रस आदि प्रवाही पदार्थ स्थूल हैं।
उत्तर संख्या :
26 जो चक्षु इन्द्रिय के द्वारा देखे जा सकते हैं किन्तु पकड़े नहीं जा सकते ऐसे छाया आदि पदार्थ को स्थूल - सूक्ष्म कहते हैं । जैसे : छाया, चांदनी, धूप, अन्धकार आदि स्कन्ध जो कि ज्ञात होने पर भी पकड़े नही जा सकते वे बादर-सूक्ष्म हैं ।
उत्तर संख्या :
27 जो चक्षु इन्द्रिय के सिवाय बाकी इन्द्रियों - बादर कहते हैं। जैसे: शब्द, गन्ध, हवा, रस, आदि पदार्थ सूक्ष्म-स्थूल हैं ।
उत्तर संख्या :
28 जो इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण नहीं किये जा सकते किन्तु सुख-दुःख के रुप में अनुभव किये जा सकते हैं, उन्हें सूक्ष कहते हैं। जैसे : पुण्य पाप रुप कार्मण वर्गणायें सूक्ष्म हैं।
उत्तर संख्या :
29 कर्म वर्गणा से नीचे के द्विअणुक स्कंध तक के जो कि अत्यन्त सूक्ष्म हैं, उन्हें सूक्ष्म-सूक्ष्म कहते हैं।
उत्तर संख्या :
30 पुद्गल द्रव्य के संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेश होते हैं।
उत्तर संख्या :
31 पुद्गल द्रव्य पूरे लोकाकाश में हैं।
उत्तर संख्या :
32 जिसमें स्पर्श रस गन्ध और वर्ण पाया जाता हैं उसे मूर्तिक या रुपी कहते हैं। पुद्गल द्रब्य को मूर्तिक या रुपी कहते हैं।
उत्तर संख्या :
33 संसार में पुद्गल द्रब्य अनन्तानन्त हैं।
उत्तर संख्या :
34 चलते हुये जीव और पुद्गल को गमन कराने में जो द्रव्य उदासीन रुप से निमित्त होता हैं, उसे धर्म द्रव्य कहते हैं।
उत्तर संख्या :
35 • जैसे चलती हुई ट्रेन को रेल्वे पटरी उदासीन रुप से निमित्त होती हैं।
• जैसे चलती हुई मछली को पानी उदासीन रुप से निमित्त होता है।
• जैसे उडती हुई पतंग को हवा उदासीन निमित्त होती हैं।
उत्तर संख्या :
36 धर्म द्रव्य स्पर्श, रस गन्ध और वर्ण रहित होने के कारण अमूर्तिक हैं।
उत्तर संख्या :
37 धर्म द्रव्य के असंख्यात प्रदेश है।
उत्तर संख्या :
38 लोकाकाश में धर्म द्रव्य एक अखण्ड हैं।
उत्तर संख्या :
39 धर्म द्रव्य लोकाकाश में तिल में तैल के समान व्याप्त है।
उत्तर संख्या :
40 जीव और पुद्गलों का गमन जहाँ तक धर्म द्रव्य का सद्भाव है वहाँ तक होता है।