उत्तर संख्या :
41 जो ठहरते हुये जीव और पुद्गलों को ठहरने में उदासीन रुप से निमित्त होता हैं उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं ?
उत्तर संख्या :
42 जैसे रुकते हुई ट्रेन को रेल्वे स्टेशन रुकने में उदासीन निमित्त होता है। जैसे यकते हुये राहगीर को पेड़ की छाया रुकने में उदासीन रुप से निमित्त होती है।
उत्तर संख्या :
43 अधर्म द्रव्य स्पर्श रस गन्ध और वर्ण रहित होने से अमूर्तिक है।
उत्तर संख्या :
44 अधर्म द्रव्य के असंख्यात प्रदेश है।
उत्तर संख्या :
45 लोकाकाश में अधर्म द्रव्य एक अखण्ड है।
उत्तर संख्या :
46 अधर्म द्रव्य लोकाकाश में तिल में तेल के समान व्याप्त है।
उत्तर संख्या :
47 अधर्म द्रव्य लोकाकाश के अन्त तक है।
उत्तर संख्या :
48 जो जीवादि सभी द्रव्यों को रहने के लिये स्थान देता है उसे आकाश द्रव्य कहते है।
उत्तर संख्या :
49 आकाश द्रव्य स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण रहित होने से अमूर्तिक है।
उत्तर संख्या :
50 आकाश द्रव्य सभी जगह फैला हुआ है।
उत्तर संख्या :
51 आकाश द्रव्य एक ही अखण्ड है।
उत्तर संख्या :
52 आकाश द्रव्य के अनन्त प्रदेश हैं।
उत्तर संख्या :
53 आकाश द्रव्य के दो भेद हैं
१. लोकाकाश २. अलोकाकाश
उत्तर संख्या :
54 धर्म और अधर्म द्रव्य के अस्तित्व और अनस्तित्व के कारण अखण्ड अकाश के दो भेद हुये हैं।
उत्तर संख्या :
55 जहाँ पर जीवादि सभी द्रव्य रहते हैं, या पाये जाते हैं, उसे लोकाकाश कहते हैं। जहाँ तक धर्म और अधर्म द्रव्य पाये जाते हैं उसे लोकाकाश कहते हैं।
उत्तर संख्या :
56 लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं।
उत्तर संख्या :
57 कोई एक पुरुष अपने दोनों पावों को फैलाकर, कमर पर दोनों हाथ रखकर सीधा खड़ा हो जाने पर उस पुरुष को आकार जैसा बनता हैं, वैसा ही लोक का आकर हैं। अर्थात लोक का आकर पुरुषाकार हैं।
उत्तर संख्या :
58 लोकाकाश १४ राजु उँचा अर्थात् , तीन सौ तैंतालीस घन राजु प्रमाण है ।
उत्तर संख्या :
59 लोकाकाश के तीन भेद हैं।
उत्तर संख्या :
60 लोकाकाश के तीन भेद हैं।
१. अधोलोक २. मध्यलोक ३. ऊर्ध्वलोक ।