उत्तर संख्या :
641 यह बालक नामक ऐरावत हाथी देव की विक्रिया से बनाया जाता है। यह हाथी १
लाख योजन विस्तार वाला है। इस हाथी के ३२ मुख (सुंड) होती हैं, एक-एक मुख में चार चार दांत होते हैं। एक-एक पर निर्मल जल से भरे हुये एक एक तालाब है। एक-एक तालाब में ३२-३२ महाकमल होते हैं। एक-एक कमल पर एक-एक नृत्य शाला होती है। एक-एक नृत्य शाला में ३२-३२ देवांगनायें नृत्य करती है। यह ऐरावत हाथी स्वर्ग का ही एक देव है जो विक्रिया से ऐसा रूप बनाता है तथा तीर्थकर के जन्माभिषेक में आता है। इस पर तीर्थकर बालक को बैठाकर सुमेरु पर्वत पर ले जाते हैं।
उत्तर संख्या :
642 तीर्थकरों की दाढ़ी और मूंछ के बाल नहीं होते हैं।
उत्तर संख्या :
643 तीर्थकर को मलमूत्र (नीहार) नहीं होने से कमण्डलु की आवश्यकता नहीं होती है। तीर्थंकर के शरीर द्वारा किसी जीव को बाधा नहीं पहुँचने के कारण पिच्छी की भी आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु चिन्ह रूप में पिच्छी और कमण्डलु रखते हैं।
उत्तर संख्या :
644 तीर्थकर को नीहार अर्थात् मल-मूत्र नहीं होता है।
उत्तर संख्या :
645 १. सीमन्धर
२. युगमन्धर
३. बाहु
४. सुबाहु
५. सुजात
६. स्वयंप्रभ
७. वृषभानन
८. अनन्तवीर्य
९. सुरप्रभ
१०. विशालकीर्ति
११. वज्रधर
१२. चन्द्रानन
१३. भद्रबाहु
१४. भुजंगम्
१५ ईश्वर
१६. नेमप्रभ (नेमि)
१७. वीरसेन
१८. महाभद्र
१९. देवयश
२०. अजितवीर्य
उत्तर संख्या :
646 तीर्थकर को जन्म से
मतिज्ञान,
श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीन ज्ञान होते है।
उत्तर संख्या :
647 तीर्थकर को आहार देने वाला गृहस्थ एक-दो भवों में मोक्ष चला जाता है।
उत्तर संख्या :
648 तीर्थकर के वैराग्य (दीक्षा-कल्याणक) के समय ८ प्रकार के लौकांतिक देव आते है। ये हजारों की संख्या में आते है।
उत्तर संख्या :
649 वासुपूज्य, आदिनाथ व नेमिनाथ पद्मासन तथा शेष सभी तीर्थकर खङ्गासन से
मोक्ष गये।
उत्तर संख्या :
650 नहीं तीर्थकर और भगवान एक नहीं है।
उत्तर संख्या :
651
भग अर्थात् ज्ञान जो कर्म रहित तथा ज्ञान, दर्शन आदि गुणों से संपन्न होते हैं, उन्हें भगवान कहते है।
उत्तर संख्या :
652 भगवान अनन्त होते हैं।
उत्तर संख्या :
653 अरिहन्त और केवली में कोई अन्तर नहीं है। दोनो ही चार घातिया कर्मों को नष्ट
कर चुके हैं।
उत्तर संख्या :
654 सामान्य तौर से अरिहन्त, भगवान और केवली में अन्तर नहीं है।
उत्तर संख्या :
655 तीर्थकर और केवली में निम्न प्रकार से अन्तर है
१. तीर्थकर २४ होते हैं, जबकि केवली अनन्त होते हैं।
२. तीर्थकर के कल्याणक होते हैं। केवली के कल्याण नहीं होते हैं।
३ तीर्थकर का समवशरण होता है। केवती का समवशरण नहीं होता।
४. तीर्थकर के चिन्ह होते हैं। केवली के चिन्ह नहीं होते हैं।
५. तीर्थकर के यक्ष-यक्षिणी होते हैं। केवली के यक्ष-पक्षिणी नही हैं।
६. सभी तीर्थकर भगवान होते हैं। सब भगवान तीर्थकर नहीं होते।
७. तीर्थंकर की माता को १६ स्पप्न आते है। केवली की माता की १६ स्वप्न नहीं आते।
८. तीर्थकर की दिव्यध्वनि नियम से खिरती हैं। केवली की दिव्यध्वनि खिरना आवश्यक नहीं है।
उत्तर संख्या :
656 १. निर्वाण
२. सागर
३. महासाधु
४. विमलप्रभु
५. श्रीधर
६. सुदत्त
७. अमलप्रभु
८. उध्दर
९. अंगिर
१०. सन्मति
११. सिन्धु
१२. कुसुमांजलि
१३. शिवगण
१४. उत्साह
१५. ज्ञानेश्वर
१६. परमेश्वर
मोक्ष गये।
१७. विमलेश्वर
१८. यशोधर
१९. कृष्णमति
२० ज्ञानमति
२१. शुध्दमति
२२. भद्र
२३. अतिक्रांत
२४ शांत
उत्तर संख्या :
657 १. महापद्म
२. सुरदेव
३. सुपार्श्व
४. स्वयप्रभु
५. सर्वात्मभूत
६. देवपुत्र
७. कुलपुत्र
८. उदक
९. प्रौष्टिल
१०. जयकीर्ति
११ मुनिसुव्रत
१२. अर (अगम)
१३. निष्पाप
१४. निष्कषाय
१५. विपुल
१६. निर्मल
१७. चित्रगुप्त
१८ समाधिगुप्त
१९. स्वयंभू
२०. अनिवर्तक
२१. जय
२२ विमल
२३. देवपाल
२४. अनन्तवीर्य