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उत्तर संख्या : 181 बिना कारण किसी को मारने का निश्चय करना, संकल्पी हिंसा है। अथवा, मन में किसी भी प्राणी को मारने का विचार करना, संकल्पी हिंसा है।

उत्तर संख्या : 182 हाँ, दूसरे को मारने के विचार मात्र से हिंसा होती है, क्योंकि ऐसा गलत विचार करने से आत्मा स्वभाव से पतित होती है।

उत्तर संख्या : 183 हाँ, स्वयंभरमण समुद्र में महामत्स्य होता है, उसके कानों में तिमिंग्ल नामक तंदुल मत्स्य चावल के बराबर होता है, वह किसी को न मारता है, न किसी को खाता है, फिर भी जब महामत्स्य छह महिने तक मुंह खोलकर सोता है, तब उसके मुंह से अनेक जीव पेट के अन्दर आते जाते रहते हैं तब वह किसी को भी खाता नही है, तब उसके कानों में स्थित तंदुल मत्स्य जो कि चावल के बराबर होता है, वह देख-देखकर सोचता है, कि मैं अगर इतना बडा होता तो मैं सबको मारकर खा जाता, ऐसा सोचने के पाप के कारण वह तन्दुल मत्स्य मरकर सातवें नरक में जाता है।

उत्तर संख्या : 184 संकल्पी हिंसा के १०८ भेद है। वे इस प्रकार है: १. समरंभ २. समारम्भ ३. आरंभ ये तीन, एवं २ मन योग २. वचन योग ३.काय योग ये तीन योग व १. कृत २ कारित ३. अनुमोदना ये तीन एवं १. क्रोध २. मान ३. माया ४. लोभ ये चार कषाय इन सबको परस्पर में गुणा करने से १०८ भेद हिंसा के होते है. ३ x ३ x ३ x ४ = १०८ हिंसा के १०८ भेद हैं।

उत्तर संख्या : 185 किसी भी शुभाशुभ कार्य करने का संकल्प करने को समरंभ कहते हैं

उत्तर संख्या : 186 संकल्पित कार्य के लिये साधनों के जुटाने को समारम्भ कहते हैं।

उत्तर संख्या : 187 संकल्पित कार्य शुरु करने को आरंभ कहते हैं।

उत्तर संख्या : 188 किसी भी शुभाशुभ कार्य को स्वयं करना कृत कहलाता हैं।

उत्तर संख्या : 189 किसी भी शुभाशुभ कार्य को दूसरे से करवाने को कारित कहते हैं।

उत्तर संख्या : 190 किसी दुसरे के द्वारा होते हुए शुभाशुभ कार्य की अनुमति देने या सराहना करने को अनुमोदन कहते है।

उत्तर संख्या : 191 मन में शुमाशुभ विचार करने को मनोयोग कहते है।

उत्तर संख्या : 192 वचन से शुभाशुभ वचन कहने को वचनयोग कहते है।

उत्तर संख्या : 193 शरीर से शुभाशुभ प्रवृत्ति करने को काययोग कहते है।

उत्तर संख्या : 194 खेती, व्यापार, और कारखाने आदि के माध्यम से जो हिंसा होती है, उसे उद्योगी हिंसा कहते हैं।

उत्तर संख्या : 195 उद्योगी हिंसा का दूसरा नाम उद्यमी हिंसा है।

उत्तर संख्या : 196 उद्योगी हिंसा में संकल्पी हिंसा नही होती है ?

उत्तर संख्या : 197 प्रस्तार व्यापार या खेती आदि में धन कमाने का भाव होता है, जीवों को मारने का उपर नहीं, इसलिये व्यापार व खेती आदि में संकल्पी हिंसा नही होती है।

उत्तर संख्या : 198 उद्योगी हिंसा का दोष तो गृहस्थ को लगता है, किन्तु संकल्पी हिंसा जैसा चिप्रिती महान दोष नहीं लगता है।

उत्तर संख्या : 199 गृहस्थ को व्यापार आदि के माध्यम से होने वाली हिंसा को भी अपनी शक्ति के अनुसार अवश्य ही त्याग करना चाहिये।

उत्तर संख्या : 200 गृहस्थ जनित कार्यों में होनेवाली हिंसा को आरंभी हिंसा कहते है। अथवा भोजन-पान आदि दैनिक कार्यों के निमित्त से जो हिंसा होती है उसे आरंभी हिंसा कहते हैं।

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