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उत्तर संख्या : 201 भोजन बनने मे, आग जलानें में, पानी भरने में साफ-सफाई करने में, कपडे आदि धोने में आरंभी हिंसा होती है।

उत्तर संख्या : 202 आरंभ जनित घरेलू कार्य करते समय आरंभी हिंसा अनिवार्य रुप से होगी किन्तु संकल्पी हिंसा नहीं होगी ।

उत्तर संख्या : 203 गृहस्थ जीवन में घरेलू कार्य करते समय जीवों को सताने या मारने का भाव नहीं अपितु साफ -सफाई का भाव होता है, इसलिये संकल्पी हिंसा नहीं होगी, किन्तु आरंभी हिंसा अवश्य होगी।

उत्तर संख्या : 204 गृहस्थ को आरंभी हिंसा का दोष तो लगेगा किन्तु संकल्पी हिंसा जैसा महान् का दोष नही लगेगा।

उत्तर संख्या : 205 गृहस्थ को सभी प्रकार की हिंसा का त्याग करना चाहिये । यथासंभव अपनी अपनी शक्ति के अनुसार अवश्यही त्याग करना चाहिये ।

उत्तर संख्या : 206 अनैतिकता के निराकरण के लिये जो जीव हिंसा होती है, उसे विरोधी हिंसा कहते हैं। स्वयं के परिवार पर, देव शास्त्र गुरुपर एवं धर्म के उपर आने वाले संकट को परिहार करने के लिये जो जीव हिंसा होती है, उसे विरोधी हिंसा कहते है।

उत्तर संख्या : 207 धर्म की, देव शास्त्र गुरु की, परिवार की एवं स्वयं की रक्षा करने में विरोधी हिंसा होती है।

उत्तर संख्या : 208 देव-शास्त्र-धर्म एवं परिवार और स्वयं की रक्षा में संकल्पी हिंसा नहीं होगी किन्तु विरोधी हिंसा होगी ।

उत्तर संख्या : 209 देव-शास्त्र-गुरु, धर्म परिवार एवं स्वयं की रक्षा के भाव होने से संकल्पी हिंसा नही होगी, वरन् विरोधी हिंसा होगी।

उत्तर संख्या : 210 गृहस्थ को विरोधी हिंसा का दोष तो लगता है किन्तु संकल्पी हिंसा के समान दोष नही लगता है।

उत्तर संख्या : 211 गृहस्थ भी अपनी शक्ति के अनुसार विरोधी हिंसा का त्याग कर सकता है। वैसे तो गृहस्थ को सभी प्रकार की हिंसा का त्याग करना चाहिये यथा शक्ति हिंसा का त्याग अवश्य ही करना चाहिये।

उत्तर संख्या : 212 उपरोक्त चारों प्रकार की हिंसाओं में से गृहस्थ को संकल्पी हिंसा का त्याग अवश्य करना चाहिये । श्रावक बिना कारण किसी भी प्राणी का वध नही करता है।

उत्तर संख्या : 213 जो बात जैसी देखी, सुनी या की हो वह वैसी ही न बोलकर विपरीत बोलना असत्य या झूठ पाप है। शास्त्र के विपरीत बोलने को असत्य या झूठ पाप कहते हैं। किसी को हानि पहुंचाने वाले वचन बोलना भी असत्य है। कषाय या स्वार्थ की पूर्ति के लिये बोले हुये झूठ पाप है।

उत्तर संख्या : 214 १. पाचं रुपये के स्थान पर फीस के नाम पर पिताजी से दस रुपये ले लेंना असत्य झुठ पाप है। २. एक दोस्त की बात दूसरे दोस्त से उल्टी सीधी लगा देना भी असत्य है। ३. बाहर खेलकुद कर आने पर पिताजी ने पूछा कहां गये थे, तो कह देना कि मन्दिर गये थे या महाराज श्री का प्रवचन सुननें में देर हो गई, ऐसा कह देना भी असत्य है।

उत्तर संख्या : 215 मुख्य रुप से असत्य चार प्रकार का होता है १. सदपलाप असत्य २. असदमिधान असत्य ३. पररुपाभिधान असत्य ४. गर्हितादि वचन असत्य

उत्तर संख्या : 216 वस्तु होते हुये भी उसका निषेध किया जाय उसे सदपलाप असत्य जिसमें वचन कहते है। जिसमें स्वकीय क्षेत्र काल भाव से विद्यमान वस्तु का निषेध किया जाता है, उसे "सदपलाप" नाम का असत्य वचन कहते है।

उत्तर संख्या : 217 जैसे किसी ने पूछा जिनेन्द्र है क्या ? तो जिनेन्द्र होने पर भी कहना कि यहाँ जिनेन्द्र नहीं है। ऐसा कहना ही सदपलाप असत्य है।

उत्तर संख्या : 218 जैसे किसी ने पूछा सुरेश है क्या ? तो सुरेश के न होने पर भी कहना कि हाँ, यहाँ सुरेश है। ऐसा कहना ही असदमिधान असत्य वचन है। जैसे -घट के न रहते हुये भी कहना कि यहां घट है।

उत्तर संख्या : 219 जिसमे कार्य को निकलने के लिए विधमान वस्तु को भी स्वरुप से अन्य रूप से कहा जाए उसे पररूपाभिधान असत्य वचन कहते है । जिसमे स्वरुप से विधमान वस्तु को कार्य निकलने के कारण अन्य रूप से कथन करने को "पररुपाभिधान" असत्य कहते है ।

उत्तर संख्या : 220 जैसे -किसी ने पूछा घोडा है क्या ? तो घोडा नहीं होने पर घोडे की जगह बैल होने पर भी कहना कि हाँ, घोडा है। यह "पररुपाभिधान" का उदाहरण है।

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