उत्तर संख्या :
161 सविपाक निर्जरा समय के अनुसार पक कर अपने आप गिरे हुये आम के समान है और अविपाक निर्जरा पाल में डालकर पकाये गये आम के समान है।
उत्तर संख्या :
162 अविपाक निर्जरा मोक्षमार्ग की सहकारी है। कारण कि सविपाक निर्जरा 'गजस्नान' के समान अप्रयोजनीय है।
उत्तर संख्या :
163 पौदगलिक कार्माण वर्गणाओंका आत्मासे वियोग होना ही मोक्ष हैं।
२) बंधके हेतुओं का अभाव और र्निजराके द्वारा संपूर्ण कर्मेका क्षय हो जाना मोक्ष है।
उत्तर संख्या :
164 आठों कर्मोंके क्षयसे मोक्ष होता हैं।
उत्तर संख्या :
165 मोक्ष के दो भेद है। द्रव्य मोक्ष भाव मोक्ष
उत्तर संख्या :
166 कर्मों का आत्मासे पृथक होना द्रव्य मोक्ष है।
उत्तर संख्या :
167 १) कर्मरहित जीवोंका मोक्ष प्राप्त होता हैं। २) भव्य जीव को ही मोक्ष प्राप्त होता हैं।
उत्तर संख्या :
168 जो भव्य जीव मनुष्य जन्म व उच्च गोत्र प्राप्त करके संसार शरीर भोंगों से विरक्त होकर के दीक्षा धारण कर तप द्वारा कर्मों का पूर्ण रीति से क्षय कर देता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है ।
उत्तर संख्या :
169 मोक्ष में जीव को अनंत सुख, अन्नत ज्ञान दर्शन व शक्ती की प्राप्ति होती है । वहाँ जीव अतीन्द्रिय अनुपम अचिनत्य सुख का अनुभव करता हैं।
उत्तर संख्या :
170 मोक्ष से जीव अब कभी भी अनन्त काल में लौटकर संसार में नही आता हैं।
उत्तर संख्या :
171 समाधान - जीव समस्त कर्मों का नाश हो जाने से अब उन्हे पुनः राग द्वेष नहीं होता है और राग द्वेष के बिना नवीन कर्मोंका आगमन नहीं होता अतः वे कर्मों के अभाव हो जाने से पुनः लौटकर संसार में नहीं आते है।
उत्तर संख्या :
172 सिध्द जीव शिध्द शिला पर लोक के अग्र भाग में रहते हैं।
उत्तर संख्या :
173 लोकाकश के आगे धर्मास्तिकाय का अभाव होने से जीव को मोक्ष हो जाने पर भी लोकाकाश के आगे नहीं जाता हैं।
उत्तर संख्या :
174 केवल ज्ञान होने के बाद ही जीवको मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
उत्तर संख्या :
175 सात तत्वों में सें अजीव आस्रव और बंध तत्व हेय अर्थात् छोडने योग्य हैं।
उत्तर संख्या :
176 जीव, संवर, निर्जरागोक्ष तत्व प्रश्न सात तत्वों में सें उत्तर सात तत्वों में उपादेय है ।
उत्तर संख्या :
177 झूठे, गलत या बुरे कार्य करने को पाप कहते है। अथवा, जिससे प्राणियों को दुःख हो उसे पाप कहते हैं। अथवा जिससे प्राणियों को अनिष्ट वस्तु का संयोग हो, उसे पाप कहते हैं। अथवा, जो आत्मा को मलिन करे, असे पाप कहते हैं। अथवा, जिन कार्यों को करने से आत्मा का पतन होता हो, उसे पाप कहते हैं।
उत्तर संख्या :
178 उत्तर पाप पांच होते है।
१. हिंसा २. झूठ ३. चोरी ४. कुशील ५. परिग्रहतरी
उत्तर संख्या :
179 किसी जीव को सताने, मारने पीटने को हिंसा पाप कहते है अथवा, प्रमाद एवं कषायों के वश होकर, किसी जीव को घात करने को हिंसा कहते हैं। राग द्वेष रुप परिणाम को हिंसा कहते है।
उत्तर संख्या :
180 उत्तर हिंसा के चार भेद है।
१. संकल्पी हिंसा २. उद्योगी हिंसा ३. आरंभी हिंसा ४. विरोधी हिंसा