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उत्तर संख्या : 241 कुशील पाप का दूसरा नाम अब्रम्ह सेवन या मैथुन भी है।

उत्तर संख्या : 242 आत्मा के स्वभाव से विचलित होकर विकारमयी दृष्टि होने को अब्रम्ह कहते है।

उत्तर संख्या : 243 अब्रम्ह १० प्रकार का है।

उत्तर संख्या : 244 अब्रम्ह के दस भेद निम्न प्रकार है। १. शरीर का श्रृंगार एवं संस्कार करना २. गारिष्ट एवं पुष्ट रस का भोजन करना ३. राग वर्धक संगीत आदि का सुनना ४. स्त्रियों में किसी प्रकार का संकल्प व विचार करनाल ५ स्त्री के अंगो को देखना ६ स्त्री को देखने का हृदय में संस्कार रखना ७ पूर्व में भोगे गये विषयों का स्मरण करना ८ आगामी भोगो की चिंता करना. ९ स्त्री संसर्ग करना १० शुक्र का क्षरण होना (मन विचलित होना)

उत्तर संख्या : 245 एक बार कुशील सेवन से ९ लाख जीव मरते है ऐसा केवली भगवान ने कहा है।

उत्तर संख्या : 246 कुशील पाप से बचने के लिये हमें निम्न प्रकार विचार करना चाहिये : १. कुशील सेवन से होने वाले दोषों का विचार करना २. स्त्रियो में पाये जाने वाले दोषो का विचार करना ३ शरीर की अशुध्दि एवं गंदगी का विचार करना. ४ ज्ञानी एवं वृध्द जनों की सेवा करना ५ स्त्री संसर्ग के दोषो का विचार करना.

उत्तर संख्या : 247 जड़ चेतन वस्तु के संचय को परिग्रह पाप कहते है। अथवा कपडे-धनादि के जरुरत से अधिक संचय करने को परिग्रह पाप कहते है। आवश्यकता से अधिक वस्तु, सामान रखना परिग्रह है। किसी पदार्थ का लालच रखने को या वस्तु में ममत्व रखने को परिग्रह कहते है।

उत्तर संख्या : 248 परिग्रह दो प्रकार है। १. अंतरंग परिग्रह २. बाह्य परिग्रह

उत्तर संख्या : 249 कषाय रुप परिणामों को या विभाव परिणति को अंतरंग परिग्रह कहते है।

उत्तर संख्या : 250 अंतरंग परिग्रह १४ प्रकार का है :. १. क्रोध २ मान ३. माया ४. लोभ ५. हास्य ६. रति ७ अरति ८ शोक ९भय १० जुगुप्सा ११ स्त्री वेद १२पुरुष वेद १३ नपुसंक वेद १४ मिथ्यात्व

उत्तर संख्या : 251 आँखो से दिखने वाले परिग्रह को बहिरंग परिग्रह कहते है।

उत्तर संख्या : 252 बहिरंग परिग्रह १० प्रकार का है : १. हिरण्य (चांदी) २. सुवर्ण ३. धन ४. धान्य ५. दासी ६.दास ७. क्षेत्र (खेत) ८. वास्तु (मकान) ९ कुप्य (वस्त्र) १० भांड (बर्तन)

उत्तर संख्या : 253 यह ठिक है कि धन दौलत आदि की प्राप्ति के पुण्य उदय से होती है किंतु उस धन दौलत में जो ममत्व बृध्दि है वह तो परिग्रह ही है। धन दौलत की लिप्सा एवं आवश्यकता से अधिक धन संच परिग्रह पाप ही है।

उत्तर संख्या : 254 परिग्रह रखने से पारिवारिक कलह और अशांत परिग्रह रखने से वाद विवाद और आपस मे फुट होती है। ज्ञान विज्ञान परिग्रह की लिप्सा से धर्म आदि करने में उत्सुकता नहीं रहती है। परिग्रह रखने से जीव को नरक जैसी दुर्गति की प्राप्ति होती है।

उत्तर संख्या : 255 परिग्रह रखने वाले को लोग लोभी, आडम्बरी, लालची या कंजुस भी कहते है।

उत्तर संख्या : 256 परिग्रह पाप में श्मश्रू नवनीत नाम का व्यक्ति प्रसिध्द हुआ है।

उत्तर संख्या : 257 परिग्रह पाप से बचने के लिये मन में संतोष रखना चाहिये। ममत्व भाव का त्याग करना चाहिये । दान धर्म आदि कार्य करते रहना चाहिये। धन को परोपकार में लगाना चाहिये ।

उत्तर संख्या : 258 हिंसा करने से जीव की तुरंत मृत्यु हो जाती है और हिंसा करनेवाले को उसी समय एवं मरण के पश्चात दूसरे जन्ममें दुख भोगने पडते है इसलिये हिंसा को सबसे बडा पाप कहा है।

उत्तर संख्या : 259 परिग्रह के कारण हिंसा, झूठ, चोरी, छल-कपट आदि कर्म करने पडते है एवं अल्प परिग्रह से भी निरंतर परिग्रह की इच्छा बढती ही जाती है जिससे मनुष्य का जीवन अशांत हो जाता है इसलिये परिग्रह को पाप को बाप कहा है।

उत्तर संख्या : 260 पापों के उल्टे व्रत है। हिंसा के विपरीत अहिंसा है। असत्य के विपरीत सत्य है। चोरी के विपरीत अचौर्य व्रत है। कुशील के विपरीत बह्मचर्य व्रत है। परिग्रह के विपरीत अपरिग्रह व्रत है।

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