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उत्तर संख्या : 281 अप्रत्याख्यान क्रोध करने से जीव को तिर्यंच गति में जाना पडता है।

उत्तर संख्या : 282 अप्रत्याख्यान क्रोध करने वाले जीव सामान्य तौर से सभी गतियों में पाये जाने पर भी मुख्य रुप से तिर्यंच गति में पाये जाते है।

उत्तर संख्या : 283 जैसे धूलि के उपर रेखा खींचने पर हवा आदि चलने से थोडी देर बाद मिट जाती है, वैसेही किसी कारण वश जीवों में क्रोध आने पर भी व्रत नियम आदि के विशुध्दि से जो क्रोध के संस्कार मिट जाते है उसे धूलि रेखा के समान क्रोध कहते है।

उत्तर संख्या : 284 धुलि रेखा के समान क्रोध देश विरत सम्यग्दृष्टि श्रावक को होता है।

उत्तर संख्या : 285 धूलि की रेखा के समान क्रोध अधिक से अधिक १५ दिन तक रहता है।

उत्तर संख्या : 286 धूलि की रेखा के समान क्रोध को प्रत्याख्यान क्रोध कहते है।

उत्तर संख्या : 287 प्रत्याख्यान क्रोध अन्तर्मुहुर्त से लेकर १५ दिन तक रहता है।

उत्तर संख्या : 288 प्रत्याख्यान क्रोध घर, कुटुम्ब, परिवार आदि के कारण किसी से कलह आदि हो जाने पर होता है। अथवा, अन्तर्मुहुर्त से अधिक देर तक किसी से बदला लेने की भावना होने पर प्रत्याख्यान क्रोध होता है।

उत्तर संख्या : 289 प्रत्याख्यान क्रोध करने से स्वयं को व दूसरे को संताप होता है। लिये हुये व्रतों में दोष लगते है। परिवार व समाज में अपयश होता है। कुल और जाति में बट्टा लगता है। आत्मा का पतन और नवीन कर्मों का बंध होता है।

उत्तर संख्या : 290 प्रत्याख्यान क्रोध करने से जीव मनुष्य गति में जाता है।

उत्तर संख्या : 291 विज्ञान प्रत्याख्यान क्रोध करनेवाले जीव चारों गतियों में पाये जाने पर भी मुख्य रुप से मनुष्य गति में पाये जाते है।

उत्तर संख्या : 292 जैसे जल मे रेखा खींचने से वह तुरन्त मिट जाती है वैसे ही जो क्रोध तुरन्त ही आत्मा की विशुध्दि से मिटता जाता है उसे जल रेखा के समान क्रोध कहते है।

उत्तर संख्या : 293 जल रेखा के समान क्रोध महाव्रतों के धारी मुनियों को होता है।

उत्तर संख्या : 294 जल रेखा के समान क्रोध अधिक से अधिक एक अन्त मुहूर्त तक रहता है।

उत्तर संख्या : 295 जल रेखा के समान क्रोध को संज्वलन क्रोध कषाय कहते है।

उत्तर संख्या : 296 संज्वलन क्रोध एक अन्तर्मुहूर्त तक रहता है।

उत्तर संख्या : 297 संज्वलन क्रोध शिष्य आदि पर राग होने के कारण होता है। अथवा, संघ की व्यवस्था बनाने हेतु व अनुशासन बनाने हेतु संज्वलन क्रोध आता है।

उत्तर संख्या : 298 संज्वलन क्रोध करने से यथाख्यात चारित्र का घात होता है। संघ समुदाय में कलह का वातावरण हो जाता है। आत्मा का पतन व अपयश होता है। नवीन कर्मों का बंध होता है।

उत्तर संख्या : 299 संज्वलन क्रोध करने से जीव देव गति में जाता है।

उत्तर संख्या : 300 संज्वलन क्रोध करने वाले जीव चारों गति में पाये जाने पर भी मुख्य रुप से देवगति में पाये जाते है।

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