णमोकार तीर्थ QA

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उत्तर संख्या : 401 कीचड़ के समान लोभ को प्रत्याख्यान लोभ कहते है।

उत्तर संख्या : 402 प्रख्यान लोभ अंतर्मुहूर्त से लेकर पंद्रह दिन तक रहता है।

उत्तर संख्या : 403 प्रत्याख्यान लोभ भोजन पानी के राग वश होता है। राज्य आदि का विस्तार करने से हो सकता है।

उत्तर संख्या : 404 प्रत्याख्यान लोभ करने से सम्यक्त्व और अणुव्रतो में हानि होती है। प्रत्याख्यान लोम करने से व्रतियों या त्यागियों के प्रति लोगों की श्रध्दा कम होती है। लोभ के कारण पापो की प्रवत्ति और कर्म का बंध होता है।

उत्तर संख्या : 405 प्रत्याख्यान लोभ करने वाले जीव चारों गतियों में पाये जाने पर भी मुख्य रूप से मनुष्य गति में पाये जाते हैं।

उत्तर संख्या : 406 जैसे हल्दी का रंग चढ़ने के बाद पुरुषार्थ के माध्यम से दूर हो जाता है उसी प्रकार से जो लोभ धर्म पुरुषार्थ से दूर जाता है उसे हल्दी के समान लोम कहते हैं।

उत्तर संख्या : 407 हल्दी रंग के समान लोभ महामुनियों को होता है।

उत्तर संख्या : 408 हल्दी रंग के समान लोभ एक अन्तर्मुहूर्त तक रहता है।

उत्तर संख्या : 409 हल्दी रंग कें समान लोभ को संज्वलन लोभ कहते हैं।

उत्तर संख्या : 410 संज्वलन लोभ एक आवलि समय से लेकर एक अंतर्मुहूर्त समय तक रहता है।

उत्तर संख्या : 411 संज्वलन लोभ महाव्रतों के अनुराग से होता है। मोक्ष की अभिलाषा से होता है। शिष्यों पर राग होने पर होता है।

उत्तर संख्या : 412 संज्वलन लोभ करने से यथाख्यात चारित्र का घात होता है। निश्चय रत्नत्रय रुप परिणामों की हानि होती है। मोक्ष के विपरीत संसार में रहना पड़ता हैं।

उत्तर संख्या : 413 संज्वलन लोभ से जीव देवगति में जाता है।

उत्तर संख्या : 414 संज्वलन लोभ करने वाले जीव चारों गति में पाये जाने पर भी मुख्य रुप से देवगति में पाये जाते है।

उत्तर संख्या : 415 क्रोध से बचने के कई उपाय है : १. क्रोध के कारणों से दूर हट जाना चाहिये । २. क्रोध के समय मौन हो जाना चाहिये । ३. किसी दूसरे के द्वारा क्रोध दिलाये जाने पर, अपने पूर्वकृत कर्मो के उदय का फल समझना चाहिये । ४. क्रोध करने से अपने को और दूसरों को क्या - क्या तकलीफ होती हैं, इसका विचार करना चाहिये । ५. तीव्र क्रोध करने से जीव नरक गति में जाता है, ऐसा सोचकर क्रोध छोड़ देना चाहिये। ६. णमोकार मन्त्र का पाठ या भक्ति स्तोत्र पढ़ने से क्रोध दूर हो जाता है।

उत्तर संख्या : 416 मान कषाय से बचने के लिये निम्न प्रकार से विचार करना चाहिए : १) पंच-परमेष्ठी और गुरुजनों की हमेशा विनय करें । २) अपने से छोटे या बड़ों का यथायोग्य सम्मान-आदि करें । ३) धन-सम्पत्ति वैभव व ज्ञान आदि का उत्कर्ष होने पर भी नम्रता धारण करें। ४) धन आदि की वृद्धि होने पर उसे पुण्य फल समझकर साम्य भाव धारण करें ५) जिस चीज के कारण मान कषाय आती है उस वस्तु का त्याग कर देवें। ६) मान के कारण जीव को क्या-क्या दुख होते है, उनका विचार करें। ७) मान कषाय के कारण जीव को दुर्गतियों में भटकना पड़ता है, ऐसा विचार कर मान कषाय को छोड़ना चाहिए ।

उत्तर संख्या : 417 माया कषाय से बचने के लिये निम्न प्रकार से विचार करना चाहिये : १) न किसी को धोखा दें और न किसी के साथ विश्वास घात करें। २) मन में जैसा सोचा हो वैसा ही मुख से व्यक्त करें। ३) स्वार्थ-परता की भावना को छोड़ दे। ४) सभी के साथ मित्रता का व्यवहार करें। ५) मन-वचन-काय की सरल प्रवृत्ति रखें । ६) किसी चीज का मन में लालच नही करें। ७) कभी किसी से झूठ नहीं बोलें । ८) मायाचारी छल-कपट आदि करने से इस लोक और परलोक में होने वाले दुखों का विचार करना चाहिए । ९) मायाचारी करने से पुण्य घटता है और पाप की भावनायें बढ़ती हैं, ऐसा विचार करना चाहिए ।

उत्तर संख्या : 418 लोभ कषाय से बचने के लिये निम्न प्रकार से विचार करना चाहिये : १) लालच करने से अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह होता हैं, जिससे जीव हिंसा आदि पाप वृत्तियाँ बढ़ती जाती हैं। २) लोभ कषाय या लालच के कारण जीव कई अनर्थ कार्य करता है। ३) लोभ कषाय के कारण जीव व्याकुल होकर इधर-उधर भ्रमण करता है। ४) लोभ में भी जीव मोहान्ध हो जाता है। ५) लोभ कषाय से बचने के लिये समस्त वस्तुओं का मत्व भाव छोडें । ६) अपने धन आदि को योग्य क्षेत्र या पात्रों का दान देना चाहिये। ७) लोभ कषाय करने से जीव को दुर्गति में जाना पडता है, ऐसा विचार कर लोभ कषाय को छोडना चाहिये ।

उत्तर संख्या : 419 चारों कषायें में से कोई भी अच्छी नही होती वैसे ही कषाये भी कोई अच्छी नही होती है, क्योकि सभी कषाये दुःख देती है।

उत्तर संख्या : 420 अरिहन्त और सिध्द परमेष्ठी कषाय रहित होते है।

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