णमोकार तीर्थ QA

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उत्तर संख्या : 421 कषाय दसवे सुक्ष्मसांपराय गुणस्थान तक होती है।

उत्तर संख्या : 422 हमें क्रोध कषाय को क्षमा से जीतना चाहिये । मान कषाय को विनय से जीतना चाहिये। माया कषाय को सरलता से जीतना चाहिये । लोभ कषाय को संतोष से जीतना चाहिये ।

उत्तर संख्या : 423 नरक गति में क्रोध कषाय की, मनुष्य गति में मान कषाय की, तिर्यंच गति में माया कषाय की और देव गति में लोभ कषाय की बहुलता पाई जाती है।

उत्तर संख्या : 424 कषायों का विस्तार से वर्णन जयधवला नामक ग्रन्थराज मे किया गया है।

उत्तर संख्या : 425 हमें कषाय कभी नहीं करना चाहिये क्योंकि कषाय करने से आत्मा का पतन एवं पापों का बंध होता है, और मरकर पुनः दुर्गतियों में जाकर कष्ट भोगना पड़ता है, अतः हमं कषय कभी नहीं करना चाहिये।

उत्तर संख्या : 426 जैनधर्म में महामन्त्र णमोकार मन्त्र है।

उत्तर संख्या : 427 णमोकार मन्त्र को महामन्त्र इसलिए कहा है कि यह णमोकार मन्त्र सब मन्त्रों में प्रमुख मन्त्र है, श्रेष्ठ है और सब कार्यों की सिध्दी करने वाला है। इसे मन्त्रों का राजा भी कह सकते हैं।

उत्तर संख्या : 428 णमोकार मन्त्र अनादि काल से है और अनन्तकाल तक रहेगा अर्थात् यह मन्त्र पहले से ही है और हमेशा ही रहेगा ।

उत्तर संख्या : 429 जिस मन्त्र में पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है, उसे णमोकार मन्त्र कहते हैं ।

उत्तर संख्या : 430 जिसके द्वारा आत्मा का आदेश निजानुभव जाना जाय वह मन्त्र है। संस्कृत में भी उत्तर बताया है मन्यते ज्ञायते आत्मोदेशन इति मन्त्र" यह मन्त्र शब्द का अर्थ है और णमोकार का अर्थ नमस्कार है । इस तरह यह नमस्कार मन्त्र है।

उत्तर संख्या : 431 णमोकार मन्त्र प्राकृत भाषा में है।

उत्तर संख्या : 432 णमोकार मन्त्र के लेखक या रचयिता कोई नहीं है, यह अनादि निधन मन्त्र है।

उत्तर संख्या : 433 णमो अरिहन्ताणं णमे सिध्दाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं यही णमोकार मंत्र है।

उत्तर संख्या : 434 प्रमोकार मन्त्र का अर्थ इस प्रकार है- अरिहन्तों को नमस्कार हो। सिध्दों को नमस्कार हो। आचार्यों को नमस्कार हो। उपाध्यायों को नमस्कार हो। लोक के सर्व साधुओं को नमस्कार हो।

उत्तर संख्या : 435 क्रमांकार मन्त्रा में पांच पद है। पहला पद णमो अरिहत्ताणं का है, दूसरा पद णमो सिध्दाण का है, तीसरा पद णमो आइरियाणं का है, चौथा पद णमो उवज्झायाणं का है और पांचवाँ पद णमो लोए सव्दसाहूण का है।

उत्तर संख्या : 436 णमोकार मन्त्र के पहले पद णमो अरिहन्ताणं में ७ अक्षर और ११ मात्रायें है। दूसरे पद गमो सिध्दाणं में ५ अक्षर और ९ मात्रायें है। तीसरे णर्मा आइरियाण पद में ७ अक्षर और ११ मात्रायें है। चौथे मनो उवज्झायाणं पद में ७ अक्षर एवं १२ मात्रायें है। पाचवे णमो लोए साहूणं पद में ९ अक्षर एवं १५ मात्रायें हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर ७+५+७+७+९ = ३५ अक्षर एवं ११+१+११+१२+१५ = ५८ मात्रायें है।

उत्तर संख्या : 437 णमोकार मन्त्र में तीन साधक परमेंष्ठी है- १. आचार्य २. उपाध्याय ३. साधु

उत्तर संख्या : 438 णमोकार महामन्त्र का महत्व अचिन्त्य है। इसके महत्व का पूर्ण विवरण करना अशक्य है। जितने सिध्द हुये हैं, हो रहे हैं, और होंगे वह सब महामन्त्र का ही प्रभाव है। कहा भी है:- ऐसो पंच जमोयारो, सव्व पाप पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम्। अर्थ - यह पंच नमस्कार मन्त्र सर्व पापों को नाश करने वाला है और सभी मगलों में पहला मंगल है।

उत्तर संख्या : 439 णमोकार मन्त्र प्रत्येक शुभ काम करने के पहले अवश्य बोलना चाहिये। यहाँ तक कि सोने समय, सोकर उठने पर, भोजन के पहले व अन्त में एवं कहीं आते जाते समय भी णमोकार मन्त्र बोलना चाहिये।

उत्तर संख्या : 440 णमोकार मन्त्र हर अवस्था में बोलना चाहिये। शुध्द अवस्था में णमोकार मन्त्र जोर से बोल सकते हैं। किन्तु अशुध्द अवस्था में मन ही मन में बोलना चाहिये।

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