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उत्तर संख्या : 421 कषाय दसवे सुक्ष्मसांपराय गुणस्थान तक होती है।

उत्तर संख्या : 422 हमें क्रोध कषाय को क्षमा से जीतना चाहिये । मान कषाय को विनय से जीतना चाहिये। माया कषाय को सरलता से जीतना चाहिये । लोभ कषाय को संतोष से जीतना चाहिये ।

उत्तर संख्या : 423 नरक गति में क्रोध कषाय की, मनुष्य गति में मान कषाय की, तिर्यंच गति में माया कषाय की और देव गति में लोभ कषाय की बहुलता पाई जाती है।

उत्तर संख्या : 424 कषायों का विस्तार से वर्णन जयधवला नामक ग्रन्थराज मे किया गया है।

उत्तर संख्या : 425 हमें कषाय कभी नहीं करना चाहिये क्योंकि कषाय करने से आत्मा का पतन एवं पापों का बंध होता है, और मरकर पुनः दुर्गतियों में जाकर कष्ट भोगना पड़ता है, अतः हमं कषय कभी नहीं करना चाहिये।

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