णमोकार तीर्थ QA

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उत्तर संख्या : 441 जो भव्य श्रद्धालु जीव णमोकर मन्त्र की श्रध्दा और विश्वास पूर्वक, आराधना या जाप करता है, उसे अनेक ऋध्दि-सिध्दि, धन-धान्य की प्राप्ति होती है एवं वह संसार सागर को शीघ्र ही पार कर मोक्ष सुख को पाता है।

उत्तर संख्या : 442 णमोकार मन्त्र में पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।

उत्तर संख्या : 443 १. जीवन्धर कुमार ने एक कुत्ते को णमोकार मन्त्र सुनाया तो कुत्ता स्वर्ग में देव हुआ। तो वह बैल अगले भव में सुग्रीय बना। २. पूर्व भवमें रामचन्द्र के जीव फ्यरुचि सेठ ने एक बैल को जमोकार मन्त्र सुनाया ३. पार्श्वनाथ जी ने जंगल में एक नाग-नागिन को मरते समय णमोकार मन्त्र सुनाया उसके प्रभाव से वे मरकर धरणेन्द्र और पद्मावती हुये। जो कि भगवान पार्श्वनाथ के यक्ष और यक्षिणी है। ४. अंजन चोर ने श्रध्दा पूर्वक णमोकार मन्त्र की आराधना की। सभी श्रध्दा होने के कारण भूलवशा मन्त्र का गलत पाठ किया (आणम् ताषम् कछु न जाण, सेठ वचन परमाणम्) इस प्रकार आराधना कर कर्मों का नाश कर सात दिनों में ही मोक्षगामी हुआ।

उत्तर संख्या : 444 णमोकार मन्त्र से हजारों मन्त्रों का निर्माण हुआ है।

उत्तर संख्या : 445 णमोकार मन्त्र में दो देव पद है :- १. अरिहंन्त २. सिध्द

उत्तर संख्या : 446 णमोकार मन्त्र में तीन गुरुपद है। १. आचार्य २. उपाध्याय ३. साधु

उत्तर संख्या : 447 णमोकार मन्त्र में अरिहन्त और सिध्द ये दो साध्य परमेष्ठी हैं।

उत्तर संख्या : 448 णमोकार मन्त्र के अन्य नाम है - पंच नमस्कार मन्त्र, मूल मन्त्र, अनादिनिधन मन्त्र, अपराजित मन्त्र, महामन्त्र आदि णमोकार महामन्त्र के ही अन्य नाम हैं।

उत्तर संख्या : 449 णमोकार मन्त्र के णमो अरिहन्ताणं और णमो अरहन्ताणं ये दोनों ही पाठ ठीक है, क्यों कि दोनों ही पाठ शास्त्रों में देखने को मिलते हैं।

उत्तर संख्या : 450 णमो अरिहन्ताणं पाठ बहुत प्राचीन शास्त्रों में मिलता है और यही पाठ दिगम्बर परम्परा में बोला जाता है। नमो अरिहन्ताणं पाठ श्वेताम्बरों में प्रचलित है। इसलिये णमों अरिहन्ताणं यही पाठ ही ठीक है।

उत्तर संख्या : 451 णमोकार मन्त्र का शुध्द पाठ आचार्य भूतबलि और आचार्य पुष्पदन्त के द्वारा लिखे गये षट्‌खण्डागम शास्त्र में है, यह जैनधर्म का प्रथम लिखित ग्रन्थ है।

उत्तर संख्या : 452 णमोकार मन्त्र के अन्तिम पद णमो लोए सव्व साहूणं में लोए व सव्व पद का अर्थ अन्त्य दीपक के समान है। जैसे घर में एक पंक्ति में अनेक दरवाजे होने पर यदि अन्त के दरवाजे पर दीप लगायें तो उसका प्रकाश बाहर के दरवाजे तक आता है, उसी प्रकार लोए व सव्व ये दोनों णमोकार मन्त्र के सभी पदों के साथ अनुवर्तन कर लेना चाहिये। पढ़ते व लिखते समय तो मूल मन्त्र ही लिखना व पढ़ना चाहिये। किन्तु अर्थ करते समय सभी पदों में लोए व सव्य शब्द लगाकर अर्थ करना चाहिये।

उत्तर संख्या : 453 णमोकार मन्त्र में सबसे उच्च पद णमो सिध्दाणं अर्थात् सिध्दों का है।

उत्तर संख्या : 454 'णमो सिध्दाणं' सिध्दों का पद उद्य होने पर भी णमो अरिहन्ताणं का पद पहले इसलिये रखा गया है कि अरिहन्त मध्य जीवों को जिनधर्म व मोहमार्ग का उपदेश देते हैं तथा मध्य जीवों का कल्याण करते है जबकि सिध्द शरीर रहित होने के कारण किसी को उपदेश नहीं देते। अतएव जमों अरिहन्ताण का पद पहले रखा गया है।

उत्तर संख्या : 455 णमोकार मन्त्र जितनी अधिक बार पढ़ा जाये उतना ही अच्छा है। णमोकार मन्त्र कम से कम ९ बार या १०८ बार बोलना चाहिये।

उत्तर संख्या : 456 णमोकार महामन्त्र का जाप या पठन ही समस्त पापों का नाश करने वाला है। णमोकार महामन्त्र, परमेष्ठियों के गुणों का स्मरण दिलाता है, इसलिये जाप या पठन के समय णमोकार मन्त्र ही बोलना चाहिये। एसो पंच णमोयारो इत्यादी पद बोलने से महामंत्र का महत्व बतलाता है, इसलिये इसे बोलने की आवश्यकता नहीं है।

उत्तर संख्या : 457 णमोकार मन्त्र का सार ॐ है।

उत्तर संख्या : 458 ॐ के द्वारा पाँच परमेष्ठियों का स्मरण होता है।

उत्तर संख्या : 459 पाँच परमेष्ठियों के नाम के प्रथम अक्षर को ग्रहण कर मि लाने पर ॐ बनता है। अरिहन्त परमेष्ठी का प्रथम अक्षर 'अ' ग्रहण करें। दूसरे सिध्द या अशरीरी परमेष्ठी का प्रथम अक्षर अ ग्रहण करें। तीसरे आचार्य परमेष्ठी का प्रथम अक्षर आ ग्रहण करी चौथे उपाध्याय परमेष्ठी का प्रथम अक्षर उ ग्रहण करें। पांचवे साधु या मुनि परमेष्ठी का प्रथम अक्षर म् ग्रहण किया। अ+अ+आ+उ+म् = ओम् = ॐ

उत्तर संख्या : 460 णमोकार मन्त्र का संक्षित रुप अ सि आ उ सा है।

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