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उत्तर संख्या : 501 १ जो पंचाचार का स्वयं पालन करते हैं और अपने शिष्यों से भी पालन कराते है उन्हें आचार्य परमेष्ठी कहते हैं। २ जो साधु सघ के नायक होते हैं और शिष्यों को शिक्षा व दीक्षा देते हैं एवं शिष्यं से अपराध होने पर दण्ड (प्रायश्चित) भी देते हैं, उन्हें आचार्य परमेष्ठी कहते है।

उत्तर संख्या : 502 आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुण होते हैं।

उत्तर संख्या : 503 अनशन ऊनोदर करै, व्रत संख्या रस छोर । विविक्त शयनासन धरै, कायकलेश सुठोर । प्रायश्चित धर विनयजुत, वैयाव्रत स्वाध्याय । पुनि उपसर्ग विचारकै, धरै, ध्यान मन लाय। १ अनशन २. ऊनोदर ३. व्रतपरिसंख्यान ४. रस परित्याग ५ विविक्त शैप्यासन ६. कायक्लेश ७. प्रायश्चित ८. विनय ९ वैश्यावृत १०. स्वाध्याय ११. प्युत्सर्ग प्युत्सर्ग १२. ध्यान ये १२ प्रकार के तप है।

उत्तर संख्या : 504 दस प्रकार के धर्म इस प्रकार है। छिमा, मारदव आरजव, सत्यवचन चित पाग। सयम तप त्यागी सरब आकिंचन तिय त्याग। १ उत्तम क्षमा २ उत्तम मार्दव ३ उत्तम आर्जव ४. उत्तम शौच ५ उत्तम सयम ६. उत्तम सत्य ७. उत्तम तप ८. उत्तम त्याग ९ उत्तम आकिचन्य १०. उत्तम ब्रह्मचर्य

उत्तर संख्या : 505 दर्शन ज्ञान चरित्र तप, वीरज पचाचार। गोपे मन क्चन काय को, गिन छत्तीस गुण सार १. दर्शनाचार २ ज्ञानाचार ३. चरित्राचार ४. तपाचार ५. वीर्याचार ये पंच आचार है।

उत्तर संख्या : 506 समता धर वन्दन करें, नाना थुति बनाय । प्रतिक्रमण स्वाध्याय जुत, कार्यात्सर्ग लगाय ॥ १. समता २. वन्दन ३. स्तुति ४. प्रतिक्रमण ५. प्रत्याख्यान ६ कार्योत्सर्ग ये ६ आवश्यक है।

उत्तर संख्या : 507 १. मन गुप्ति २. वचन गुप्ति ३. काय गुप्ति ये तीन गुप्तिया है।

उत्तर संख्या : 508 आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुण निम्न प्रकार से हैं द्वादश तप, दश धर्म जुत, पार्टी पंचाचारा षट् आवश्यक त्रय गुप्ति गुन, आचारज पद सार। अर्थात १२ तप, १० धर्म, ५ आधार, ६५ आवश्यक और ३ गुप्ति, ये ३६ मूलगुण आचार्य परमेष्ठी के हैं।

उत्तर संख्या : 509 जो मुनि स्वयम् पढ़ते है और शिष्यों को पढ़ाते है उनको उपाध्याय परमेष्ठी कहते हैं।

उत्तर संख्या : 510 उपाध्याय परमेष्ठी दीक्षा और प्रायश्चित नहीं देते। वे मात्र पढ़ते और पढ़ाते हैं तथा उपदेश देते हैं।

उत्तर संख्या : 511 उपाध्याय परमेष्ठी के २५ मूलगुण होते है।

उत्तर संख्या : 512 जो विषय आशाओ से रहित, आरभ और परिग्रह से रहित एवं ज्ञान और ध्यान में लीन रहते हैं, उन्हें साधु परमेष्ठी कहते हैं।

उत्तर संख्या : 513 अध्ययन, करना आत्म ध्यान में लीन रहना, तप-त्याग व साधना में निरत रहना एवं उत्तर आत्म कल्याण करना ही साधु परमेष्ठी का मुख्य कार्य है।

उत्तर संख्या : 514 ११ अस और १४ पूर्व इस प्रकार २५ मूलगुण उपाध्याय परमेष्ठी के होते हैं।

उत्तर संख्या : 515 १. उत्पाद पूर्व २. अलावणी पूर्व ३. श्रीयांनुवाद पूर्व ४.अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व ५. ज्ञानप्रवाद पूर्व ६. सायप्रवाद पूर्व ७ . आत्म प्रवाद पूर्व ८. कर्म प्रशाद पूर्व ९ प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व १० विद्यानुवाद पूर्व ११ कल्याणवाद पूर्व १२ प्राणावाद पूर्व १३ क्रिया विशालपूर्व १४. लोक बिन्दुसार पूर्व

उत्तर संख्या : 516 ४ समवायान १ अनुत्तरोपपादिकदशाम १० प्रश्न व्याकरणाग ११ विपाक सूत्राग

उत्तर संख्या : 517 साधु परमेष्ठी के २८ मूलगुण होते हैं।

उत्तर संख्या : 518 ५ महाव्रत, ५ समिति, ५ इन्द्रिय निरोध, ६ आश्श्यक, ७, शेष गुण। इस प्रकार साधु परमेष्ठी के ५+५+५+६+७ = २८ मूलगुण होते हैं।

उत्तर संख्या : 519 १. अहिसा महाव्रत २. सत्य महाव्रत ३ अर्चीर्य महाव्रत ४. ब्रह्मचर्य महाव्रत ५. परिग्रह त्याग महाव्रत।

उत्तर संख्या : 520 १. ईयां समिती २ भाषा समिती ३. एषणा सभिती ४ व्युत्सर्ग समिती ५. प्रतिष्ठापना समिती

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