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उत्तर संख्या : 541 सिध्द परमेष्ठी शरीर रहित होने से निकल परमात्मा है।

उत्तर संख्या : 542 आचार्य, उपाध्याय साधु ये तीन परमेष्ठी अवधिज्ञानी हो सकते हैं।

उत्तर संख्या : 543 अरिहन्त व सिध्द परमेष्ठी कषाय से पूर्णत रहित होते हैं।

उत्तर संख्या : 544 आचार्य, उपाध्याय व साधु परमेष्ठी पिच्छी और कमण्डल रखते है।

उत्तर संख्या : 545 सिध्द परमेष्ठी द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म से रहित होते हैं।

उत्तर संख्या : 546 अरिहन्त परमेष्ठी इसी भव में नियम से मोक्ष जायेगे ।

उत्तर संख्या : 547 अरिहन्त, आचार्य, उपाध्याय व साधु परमेष्ठी ध्यान करते हैं।

उत्तर संख्या : 548 सभी परमेष्ठी सम्यग्दृष्टि है।

उत्तर संख्या : 549 सिध्द परमेष्ठी के चारित्र की पूर्णता हो गई है।

उत्तर संख्या : 550 आचार्य व उपाध्याय परमेष्ठी बने बिना भी मोक्ष मिल सकता हैं।

उत्तर संख्या : 551 पांचों परमेष्ठीयों की मूर्ति जिन मन्दिर में विराजमान करते हैं किन्तु विशेष रुप से उत्तर अरिहन्त और सिध्द परमेष्ठी की प्रतिमा विराजमान की जाती है।

उत्तर संख्या : 552 अरिहन्त परमेष्ठी पृथ्वी से ५००० धनुष उपर रहते हैं।

उत्तर संख्या : 553 अरिहन्त परमेष्ठी का परम औदारिक शरीर होता है।

उत्तर संख्या : 554 परमेष्ठियों का शरीर के विभिन्न अंगों में ध्यान कर सकते हैं। अरिहन्तों का नाभि में, सिध्दों का ललाट के अग्रभाग में, आचार्यों का कण्ठ में, उपाध्यायों का दाहिनी भुजा पर एवं साधुओं का बायीं भुजा पर ध्यान करना चाहिये।

उत्तर संख्या : 555 'मं'पापं 'गलं' गालयति इत मंगलम् अर्थात् जो पार्पो को गलाये, नाश करे उसे मंगल कहते हैं। २. मंगं पुण्यं लातीति मंगलं अर्थात जो पुण्य को लाये उसे मंगल करते हैं। ३ जिसके निमित्त से पाप का नाश होता है रू पुण्य की प्राप्ति होती है, उसे मगल कहते हैं।

उत्तर संख्या : 556 चत्तारि मंगल-अरहंत मंगलं, सिध्द मंगलं, साहु मंगलं, केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं ।

उत्तर संख्या : 557 चत्तारि मंगल-अरिहन्त मंगल है, सिध्द प्रभु मंगल है, साधु मंगल है और केवली भगवान के द्वारा कहा हुआ धर्म मंगल है।

उत्तर संख्या : 558 लोक में मंगल चार है: १. अरिहन्त मंगल है। २. सिध्द प्रभु मंगल है। ३. साधु मंगल है। ४. केवली भगवान के द्वारा कहा हुआ धर्म मंगल है।

उत्तर संख्या : 559 चार मंगलो में आचार्य और उपाध्याय परमेष्ठी साधु परमेष्ठियों में गर्भित होने से अलग से ग्रहण नहीं किया क्योंकि आचार्य और उपाध्याय स्वरूप की अपक्षा साधु ही है। अर्थात आचार्य व उपाध्याय को साधुओं में समावेश कर लिया है।

उत्तर संख्या : 560 दोनों ही पाठ शुध्द है। वैसे प्राचीन छपी हुई पुस्तकों में अरिहन्त मंगल पाठ मिलता और नई पुस्तकों में अरिहन्ता मंगल पाठ मिलता है।

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