उत्तर संख्या :
561 १. संसार में सबसे उत्कर्ष पद को उत्तम कहते हैं। २. जिनके पूजन वंदन से पुष्य की प्राप्ति व पाषण का क्षय होता है उसे उत्तम कहतेहैं।
उत्तर संख्या :
562 चत्तारि लागुत्तमा
अरहत लोगुत्तमा
सिध्द लोगुत्तमा
साहु लोगुत्तमा
केवली पण्णत्ता धम्मा लोगुत्तमा
उत्तर संख्या :
563 चत्तारि लागुत्तमा के पाठ का अर्थ निम्न प्रकार है
चत्तारि लोगतमा अर्थात् लोक में उत्तम चार है।
अरहत लोगुत्तमा अर्थात् लोक में अरिहन्त उत्तम है।
सिध्द लोगुत्तमा अर्थात लांक में सिध्द प्रभु उत्तम है।
साहु लोगुत्तमा अर्थात लाक में साधु उत्तम है।
केवली पण्णत्ता धम्मा लोगुत्तमा अर्थात् लोक में केवली के द्वारा प्रणीत कहा हुआ धर्म उत्तम है।
उत्तर संख्या :
564 लोक में उत्तम चार है
१. अरिहन्त २. सिध्द ३. साधु ४. केवली के द्वारा कहा हुआ धर्म।
उत्तर संख्या :
565 दोनों ही पाठ शुध्द है, क्योंकि चत्तारि लोगुत्तमा के दोनों ही पाठ शास्त्रों में मिलते है।
उत्तर संख्या :
566 जिनका नाम लेने से तथा जिनके सान्निध्य व शरण में जाने से संसार के दुखों से छुटकारा मिले, उसे शरण कहते हैं।
उत्तर संख्या :
568 'चत्तारि शरणं पव्वज्ञ्जामि' पाठ का अर्थ निम्न प्रकार है: चत्तारि शरणं पव्वज्जामि अर्थात् मैं चार की शरण में जाता हूँ। अरहंत शरण पव्वञ्जामि अर्थात् मैं अरहंत की शरण में जाता हूँ। सिध्द शरणं पव्वज्जामि अर्थात में सिध्द की शरण में जाता हूँ। साहु शरणं पव्वज्जामि अर्थात मैं साधु की शरण में जाता हूँ। केवली पण्यत्तो धम्मो शरणं पव्वजामि अर्थात् मैं केवली प्रणीत धर्म की शरण में जाता हूँ।
उत्तर संख्या :
569 लोक में शरण चार है १. अरिहन्त २. सिध्द ३. साधु ४. केवली प्रणीत धर्म ।
उत्तर संख्या :
570 चत्तारि शरणं पव्वज्जामि में प्राचीन शास्त्रों में अरिहन्त शरणं पच्वञ्जामि का पाठ मिलता है, बाकी अरहंते और अरहंता शरणं पव्वञ्जामि के पाठ का निर्णय आगम शास्त्रों के अनुसार करना चाहिये।
उत्तर संख्या :
571 चत्तारि शरणं पट्वञ्जामि में साहु शरणं पव्वज्ञ्जामि कहने पर आचार्य और उपाध्याय का साधुओ के अन्तर्गत ही ग्रहण कर लिया गया है। आचार्य और उपाध्याय साधु से रहित नहीं है, इसलिये मैं साधुओं की शरण में जाता हूँ ऐसा कहनेपर आचार्य उपाध्याय का अर्थ ग्रहण हो जाता है।
उत्तर संख्या :
572 चत्तारि लोगुत्तमा में साधु लोगुत्तमा कहने पर आचार्य और उपाध्याय को, साधुओं के अन्तर्गत ही ग्रहण कर लिया है।
उत्तर संख्या :
573 संसार में सबसे उत्कृष्ट पुण्य तीर्थकरों का होता है।
उत्तर संख्या :
574 १. जो धर्म तीर्थ को चलाते हैं उन्हें तीर्थकर कहते हैं। २. जिनके कल्याणक होते हैं, और जो भव्य जीवों को सच्चे धर्म का उपदेश देते हैं उन्हें तीर्थकर कहते हैं.
उत्तर संख्या :
575 तीर्थंकरों की अलग-अलग पहचान उनके चिन्ह से होती है।
उत्तर संख्या :
576 नहीं, सभी तीर्थकरों के चिन्ह एक जैसे नहीं होते हैं। सभी तीर्थकरों के चिन्ह
अलग-अलग होते हैं।
उत्तर संख्या :
577 ये चिन्ह तीर्थकर के दाहिने पैर के अंगूठे में जन्म से ही होते हैं।
उत्तर संख्या :
578 तीर्थकर के चिन्ह का निर्णय सौधर्म इन्द्र करता है।
उत्तर संख्या :
579
तीर्थकर के चिन्ह जन्म कल्याणक अभिषेक के समय सुमेरु पर्वत पर निश्चित किये जाते है।
उत्तर संख्या :
580 नहीं, सभी प्रतिमाओं पर चिन्ह नहीं होता मात्र तीर्थंकर की प्रतिमाओं पर ही चिन्ह होता है।