णमोकार तीर्थ QA

आपके खोज परिणाम मिल गए हैं |

उत्तर संख्या : 601 नहीं, सभी तीर्थकर एक ही स्थान से मोक्ष नहीं गये किन्तु उनके मोक्षगमन का स्थान (क्षेत्र) भी अलग-अलग है।

उत्तर संख्या : 602 वासुपूज्य आदिनाथ, मलिनाथ एवं नेमीनाथ ये तीन तीर्थकर पद्मासन से मोक्ष गये है।

उत्तर संख्या : 603 शेष २१ तीर्थकर खड्‌गासन (कायोत्सर्गासन, खड़े-खड़े) से मोक्ष गये है।

उत्तर संख्या : 604 पद्मप्रभ एवं वासुपूज्य का वर्ण लाल, चन्द्रप्रभ एवं पुष्पदन्त का वर्ण सफेद, सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ का वर्ण नील (श्याम) मुनिसुव्रतनाथ एवं नेमिनाथ का वर्ण हरित था। शेष तीर्थकरों का वर्ण स्वर्ण के समान पीत वर्ण था।

उत्तर संख्या : 605 सभी तीर्थकरों का जन्म क्षत्रिय कुल में होता है।

उत्तर संख्या : 606 शान्तिनाथ, कुंथुनाथ एंव अरहनाथ का कुरु वंश था। मुनिसुव्रतनाथ एव नेमिनाथ का हरि वंश था। पार्श्वनाथ का उग्रवंश था एवं महावीर भगवान का नाथ वश था। शेष तीर्थकरों का इक्ष्वाकु वंश था।

उत्तर संख्या : 607 हाँ, सभी तीर्थंकरों के शासन देव देवियाँ (यक्ष यक्षिणियों) होती है।

उत्तर संख्या : 608 चौबीस तीर्थकरों में से एक से अधिक नाम वाले तीन तीर्थकर है। १. आदिनाथ २. पुष्पदन्त ३. महावीर

उत्तर संख्या : 609 अदिनाथ के दो नाम और है १. ऋषमदेव २. वृषभनाथ

उत्तर संख्या : 610 पुष्पदन्त जी के एक नाम और है, सुविधिनाथ।

उत्तर संख्या : 611 तीर्थंकर महावीर के कुल ५ नाम है १. वीर २. अतिवीर ३. महावीर ४. सन्मति ५.वर्धमान

उत्तर संख्या : 612 जब इन्द्रगण शिशु महावीर का जन्माभिषेक सुमेरु पर्वत पर बड़े बड़े १००८ कलशों से उल्लासपूर्वक कर रहे थे, तब इन्द्रों के मन में एक क्षण के लिये शंका हुई कि कहीं नन्हा सा शिशु पानी के प्रवाह में बह न जाये, अतः इन्द्रों ने अभिषेक रोक दिया। तब शिशु ने अपने बाँये पैर के अगूंठे से सुमेरु पर्वत को दबाकर कम्पायमान कर दिया। इससे इन्द्र की शंका का निराकरण हुआ और उसने शिशु का वीर नाम रखा।

उत्तर संख्या : 613 एक दिन एक पागल हाथी गांव में खूब उपद्रव कर रहा था। उस उम्मत हाथी को कोई वश में नहीं कर पा रहा था। वर्धमान ने क्षण भर में हाथी का अपने वश में कर लिया। तब से वर्धमान को महावीर के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा।

उत्तर संख्या : 614 महावीर के उत्पन्न होने पर माता-पिता एवं राज्य का वैभव, पराक्रम आदि बढ़ता ही गया, इसलिये वीर प्रभु का दूसरा नाम वर्धमान पड़ा।

उत्तर संख्या : 615 बालक वर्धमान एक समय पालने में झूल रहे थे। उसी समय संजय और विजय ये दो मुनिराज बालक के पालने के सामने से निकल रहे थे। उन्हें तत्वों में शंका थी, जिसका निवारण बालक के दर्शन मात्र से हो गया। तब उन्होंने बालक का नाम सन्मति रखा।

उत्तर संख्या : 616 एक बार बालक महावीर कुछ राजकुमारों के साथ आमली क्रीड़ा (लुका -छुपी का खेल) कर रहे थे, उसी समय स्वर्ग से संगम नाम का देव, सांप का रूप बनाकर परीक्षा के लिये आया। सभी बालक सांप देखकर भयभीत होकर भाग गये, किन्तु बालक महावीर निडरत्तापूर्वक सांप को पकडकर दूर छोड़ आये। तभी संगम वास्तविक देव रूप में बालक महावीर के पास आया तथा उन्हें नमस्कार कर उनके साहस की प्रशंसा की। उसने उन्हें अतिवीर नाम देकर संम्बोधन किया, तभी से उन्हें अतिवीर कहा जाने लगा।

उत्तर संख्या : 617 चौबीस तीर्थकरों में से ५ तीर्थकर बाल ब्रहाचारी थे: १. वासुपूज्य २. मल्लिनाथ ३. नेमिनाथ ४. पार्श्वनाथ ५. महावीर।

उत्तर संख्या : 618 शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ ये तीनों कामदेव, चक्रवर्ती और तीर्थकर इन तीन तीन पदों के धारी थे।

उत्तर संख्या : 619 १. सुपार्श्वनाथ २. पार्श्वनाथ ३. महावीर इन तीन तीर्थकरों पर उपसर्ग हुआ था।

उत्तर संख्या : 620 जो सब जीवों का हित चाहते हैं एवं जो सोलह कारण भावनाओं को मारक तीर्थकर प्रकृति का बंध करते हैं वे ही तीर्थकर बन सकते हैं।

समाचार प्राप्त करें

जुड़े रहे

मालसेन, ताल चंदवाड़, जिला नासिक, महाराष्ट्र, भारत

+91

@ णमोकार तीर्थ

Copyright © णमोकार तीर्थ. All Rights Reserved.

Designed & Developed by softvyom.com