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उत्तर संख्या : 101 तत्व सात होते हैं १. जीव २. अजीव ३. आस्त्रव ४. बन्ध ५. संवर ६. निर्जरा ७. मोक्ष नोट : जीव तत्व का कथन ज्ञान विज्ञान भाग २ में किया गया हैं. वहाँ से देखो

उत्तर संख्या : 102 • जिसमें चेतना नहीं पायी जाती है उसे अजीव कहते हैं। • जिसमें ज्ञान दर्शन नहीं पाया जाता है अजीव कहते हैं।

उत्तर संख्या : 103 सभी प्रकार के फर्नीचर, टी.व्ही., रेडीयो, घडी, कपडे, शरीर, मकान, धन, दौलत, आदि सभी अजीव वस्तुयें हैं।

उत्तर संख्या : 104 हाँ! कर्म भी अजीव हैं।

उत्तर संख्या : 105 सात तत्वों में से एक जीव तत्व चेतन है। बाकी के छह तत्व अचेतन हैं।

उत्तर संख्या : 106 सात तत्वों में से हमें मात्र एक अजीव (पुदगल) तत्व ही दिखार्द देता हैं।

उत्तर संख्या : 107 आत्मा में कर्मो कें आने को आस्रव कहते हैं। कर्मों के आने के द्वार को आस्रव कहते हैं। जिस द्वार से आत्मा में कर्म आते हैं उसे आस्रव कहते हैं ।

उत्तर संख्या : 108 १) भावास्त्रव २) द्रव्यास्त्रव

उत्तर संख्या : 109 आत्माके जिन परिणामों से कर्मोंका आगमन होता है उसे भावास्त्रव कहते है।

उत्तर संख्या : 110 कर्मों के आने को द्रवास्त्रव कहते है।

उत्तर संख्या : 111 मन वचन काय के निमित्त से आत्म प्रदेशों में परिस्पन्दन होने से कर्मों का आस्रव होता हैं।

उत्तर संख्या : 112 १. मिथ्यात्व २. अविरति ३. प्रमाद ४. कषाय ५. योग

उत्तर संख्या : 113 दूसरी तरह से आस्रव दो प्रकार का होता हैं। १. शुभ आस्रव २. अशुभ आस्रव

उत्तर संख्या : 114 • आत्मा में शुभ कर्मों के आने को शुभ आस्रव कहते हैं। • जिन कार्यों के करने से आत्मा को पुण्य की प्राप्ति होती हैं, उसे शुभास्रव कहते है।

उत्तर संख्या : 115 जिनेन्द्र देव की पूजन करने से, गुरुजनों की भक्ति व सेवा करने से, स्वाध्याय करने से, संयम पालन करने से, दान देने से, एवं शक्ति अनुसार तप व त्याग करने से, परोपकार करने से शुभ कर्मों का आस्रव होता हैं ।

उत्तर संख्या : 116 शुभ कर्मों के आस्रव से पुण्य की प्राप्ति होती हैं। जिससे जीव को संसार के सुख एवं परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

उत्तर संख्या : 117 जिससे आत्मा में अशुभकर्म आते है, उसे अशुभ आस्त्रव कहते है। जिन कार्यों कें करने से आत्माको पाप की प्राप्ती होती है उसे अशुभ आस्त्रव कहते है।

उत्तर संख्या : 118 किन्ही जीवों को सताने से, मारने से, झूठ बोलने से चोरी करने से, कुशील या दुराचरण से एवं परिग्रह संचय करने से किसी की निंदा चुगली करने से, अशुभ कर्मों का आस्त्रव होता है।

उत्तर संख्या : 119 अशुभ कर्मों के आस्रव से पाप होता हैं। जिससे जीव को संसार में नरक तिर्यंच गति के दुःख एवं अनेक तरह के दुःख होते हैं।

उत्तर संख्या : 120 • आत्मा के प्रदेशों से कर्मों का एकम एक हो जाने को बंध कहते हैं। • आत्मा में कर्मों के मिल जाने को बंध कहते हैं। • आत्मा और कर्मों के संश्लेश संबध होने को बंध कहते हैं। • कषाय सहित जीव को कर्म योग्य पुद्गलों का ग्रहण कने को बंध कहते हैं।

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