उत्तर संख्या :
121 बंध कषाय सहित संसारी जीव को ही होता हैं। मुक्त जीवों में बंध नहीं होता हैं, क्योंकि वे कषाय रहित होते हैं।
उत्तर संख्या :
122 १. द्रव्यबन्ध २. भावबन्ध की अपेक्षा बन्ध के दो भेद कहे हैं।
उत्तर संख्या :
123 ज्ञानावरणादि कर्मों का आत्मा के साथ बन्ध होने को द्रब्य बन्ध कहते हैं।
उत्तर संख्या :
124 जिन भावों से ज्ञानवारणादि कर्मों का बन्ध होता है,' उन राग-द्वेषादि भावों को भाव-बन्ध कहते हैं।
उत्तर संख्या :
125 द्रव्य बंन्ध चार प्रकार का हैं
उत्तर संख्या :
126 १. प्रकृति बन्ध २. प्रदेश बन्ध ३. स्थितिबन्ध ४. अनुभाग बन्ध यह चार प्रकार के बन्ध हैं।
उत्तर संख्या :
127 ज्ञानावरणादि कर्मों के स्वभाव को प्रकृति बन्ध कहते हैं।
उत्तर संख्या :
128 एक बार में आत्मा के साथ जितने कर्मों का बन्ध होता हैं, उन कर्मों की संख्या को प्रदेश बन्ध कहते हैं।
उत्तर संख्या :
129 कर्मों का आत्मा के साथ रहने की कालावधि को स्थिति बन्ध कहते हैं।
उत्तर संख्या :
130 कर्मों के फल देने की शक्ति को अनुभाग बन्ध कहते हैं।
उत्तर संख्या :
131 आत्मा में कर्मों का आना आस्रव हैं, किंन्तु आत्मा और कर्मों का एकमएक हो जाना बन्ध है, यही इन दोनों में अन्तर हैं।
नोट : आस्रव व बन्ध तत्व का विशेष कथन कर्म विज्ञान पुस्तक में किया है विशेष जिज्ञासु हमारी कर्म विज्ञान पुस्तक को पढे ।
उत्तर संख्या :
132 बन्ध होने के पाँच कारण हैं
१. मिथ्यात्व २. अविरति ३. प्रमाद ४. कषाय ५. योग
इन पाँच कारणों से बन्ध होता हैं।
उत्तर संख्या :
133 शुभ भावों से शुभ कर्मों का बन्ध होता हैं।
उत्तर संख्या :
134 अशुभ भावों से अशुभ कर्मों का बन्ध होता हैं।
उत्तर संख्या :
135 शुभ कर्मों के बन्ध से जीव को संसार में ऐन्द्रियक, मानसिक, शारीरिक आदी अनेक प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती हैं। एवं परम्परा से मोक्ष की भी प्राप्ति होती हैं। अशुभ कर्मों से जीव को बंन्ध तत्व से बचने के लिय सम्यक् दर्शन सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चारित्रका आश्रय लेना चाहिए । बन्ध से जीव को संसार में नाना प्रकार के दुःख होते हैं।
उत्तर संख्या :
136 हाँ जीव को शुभाशुभ भावों के द्वारा हमेशा ही बन्ध होता हैं।
उत्तर संख्या :
137 जीव को बन्ध तत्व से बचने के लिये सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र का आश्रय लेना चाहिये ।
उत्तर संख्या :
138 हाँ - हमकों भी शुभाशुभ भावों से बन्ध होता हैं।
उत्तर संख्या :
139 • कर्मों के रोकने को संवर कहते हैं।
• आस्रव को रोकना संवर हैं।
• आत्मा में कर्मों के नहीं आने देने को संवर कहते हैं।
उत्तर संख्या :
140 संवर दो प्रकार के हैं।
१. द्रव्य संवर २. भाव संवर